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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2678
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी द्वितीय प्रश्नपत्र - साहित्यालोचन

प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।

उत्तर -

ऐतिहासिक आलोचना उतनी ही पुरानी है जितनी कि स्वयं हिन्दी साहित्य | हिन्दी साहित्य में आधुनिक चेतना के पुरस्कर्ता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी ने अपने दो लेखों में हिन्दी साहित्य के विकास पर प्रकाश डाला है। स्वयं शिव सिंह सरोज ने इसी प्रकार का पहला क्रमबद्ध प्रयास किया और उनसे पहले भी कुछ छोटे-मोटे कल्प संग्रह हो चुके थे। शिव सिंह सरोज के आधार पर ही जार्ज गियर्सन ने 'मार्डन वर्नाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दुस्तान' नामक ग्रन्थ लिखा। इसमें गियर्सन ने कुछ कवियों पर आलोचनात्मक विचार प्रकट किए। इसके बाद आता है मिश्र बन्धुओं का मिश्र बन्धु विनोद। आगे चलकर एफ0 ए0 के0 ने 1920 में एक छोटा सा इतिहास ग्रन्थ लिखा जिसमें उन्होंने तत्कालीन राजनैतिक व्यवस्थाओं पर विचार किया। बद्रीनाथ भट्ट ने भी हिन्दी नाम से एक पुस्तक लिखी जिसमें साहित्य तथा भाषा का क्रमिक इतिहास है। हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने के अनेक छुटपुट प्रयास हुए परन्तु आचार्य शुक्ल का ग्रन्थ ही अधिक प्रामाणिक माना गया। शुक्ल जी ने काल विभाजन करके सभी कालों की विशेषताओं का निरूपण किया। यही नहीं, उन्होंने साहित्य की धारा को इतिहास के साथ मिलाकर देखा और उन प्रभावों का मूल्याँकन भी किया, जो तत्कालीन राजनीतिक अवस्थाओं से प्रभावित थी। अब हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखने के द्वार खुल चुके थे। डॉ. राम कुमार वर्मा, बाबू श्याम सुन्दर दास ने इस दिशा में स्तुत्य प्रयास किये। शुक्ल जी के इतिहास ग्रन्थ में भले ही राजनैतिक अवस्थाओं का साहित्य के विभिन्न कालों के साथ सम्बद्ध दिखाया गया परन्तु वह केवल पृष्ठभूमि के रूप में। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य की भूमिका नामक ग्रन्थ लिखकर इस अभाव की पूर्ति की। द्विवेदी जी का निष्कर्ष है कि अगर इस्लाम भारत में न आया होता तो भी हिन्दी साहित्य का ताना बाना वैसा ही होता है जैसा आज है। द्विवेदी जी का यह ग्रन्थ इतिहास ग्रन्थ तो है ही, लेकिन ऐतिहासिक आलोचना की दृष्टि से भी विशेष महत्व रखता है।

पंडित शान्तिप्रिय द्विवेदी जी ने एक रचना लिखी है। 'इतिहास की आलोक में। उनकी एक और रचना है 'छायावाद और उसके बाद पहली रचना में जहाँ इतिहास के क्रमिक विकास पर प्रकाश डाला गया है वहाँ दूसरी में साहित्य के विकास का अध्ययन किया गया है। सच्चाई तो है कि इनमें लोक रुचि और लोक विचारधारा का क्रमिक अध्ययन है। शान्तिप्रिय द्विवेदी ने गाँधीवाद रोमांटिसिज्म, समाजवाद, रियलिजम आदि वादों में लोक चेतना का अध्ययन किया और इनका साहित्य पर हुए प्रभाव का मूल्याँकन किया। ऐतिहासिक आलोचना पद्धति में दिनकर जी का योगदान भी उल्लेखनीय है। वे भी इतिवृत्तात्मक, छायावादी और प्रगतिवादी के अन्तःस्थल में प्रवाहित होने वाली विचारधारा को स्पष्ट करने का प्रयास करते हैं। उनका विचार है कि " वैयक्तिकता का उत्थान ही साहित्य में छायावाद कहलाने लगा। धीरे-धीरे हिन्दी का कवि अपनी वैयक्तिकता से सामाजिकता की तरफ अग्रसर हुआ। वह समाज के अधिक निकट आकर अनुभूति ग्रहण करने लगा। परिणाम यह हुआ कि कवि पलायलनवादी दृष्टिकोण को छोड़कर देश प्रेम के गीत गाने लगा। यही नहीं, वह समाज के यथार्थ का भी वर्णन करने लगा। इसके परिणामस्वरूप प्रगतिवादी साहित्य लेखन का कार्य शुरू हुआ। इस प्रकार हम देखते हैं कि द्विवेदी जी और दिनकर जी दोनों ही ऐतिहासिक आलोचना पद्धति का सहारा लेकर आधुनिककाल हिन्दी साहित्य के विकासक्रम पर प्रकाश डालते हैं।

ऐतिहासिक आलोचना पद्धति निःसंदेह बहुत ही अच्छी आलोचना पद्धति है, लेकिन इसकी कुछ सीमाएँ भी हैं जैसे इस आलोचना में आलोचक ऐतिहासिक पूर्व परम्पराओं और उनके सम्बन्धों को आवश्यकता से अधिक महत्व देने लगता है। फलतः रचनाकार की स्वतंत्र सत्ता की अवहेलना कर दी जाती है। पुनः यह आलोचना पद्धति रचना को युग के परिप्रेक्ष्य में समझने में तो सहायक होती है लेकिन उसके कलात्मक गुणों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इसके फलस्वरूप रचना का साहित्यिक पक्ष उपेक्षित हो जाता है। इसीलिए विनचैस्टर ने कहा है -

“It results, infact are historical rather than critical."

आज ऐतिहासिक आलोचना पद्धति हिन्दी की प्रधान आलोचना पद्धति बन चुकी है। वह युग चेतना को साहित्य की पृष्ठभूमिका के रूप में नहीं चित्रित करतनी बल्कि साहित्य और युग चेतना का अन्योन्य आश्रय सम्बन्ध भी दिखाती है। साहित्यिक युग का परिणाम होता है और वह युग का दिशा निर्देश भी करता है। इसी सिद्धान्त को लेकर ऐतिहासिक आलोचना आगे बढ़ रही है। वह साहित्य के इतिहास को भी नवीन दृष्टिकोण प्रदान करती है। पीछे शान्तिप्रिय के जिन दो ग्रन्थों का उल्लेख किया गया है वे इसी प्रवृत्ति के परिणाम हैं। शान्तिप्रिय द्विवेदी और रामधारी सिंह दिनकर के विवेचन में निजी रुचि का भी विशेष महत्व है। अतः इनकी आलोचना पद्धति में इतिहास के विशुद्ध दृष्टिकोण का निर्वाह नहीं है। इनके ग्रन्थ इतिहास ग्रन्थ नहीं अपितु ऐतिहासिक आलोचना के श्रेष्ठ उदाहरण हैं। इतना अवश्य है कि ये ग्रन्थ इतिहास लेखन को नवीन प्रेरणा प्रदान करते हैं।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आलोचना को परिभाषित करते हुए उसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकासक्रम में आचार्य रामचंद्र शुक्ल के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  4. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी की आलोचना पद्धति का मूल्याँकन कीजिए।
  5. प्रश्न- डॉ. नगेन्द्र एवं हिन्दी आलोचना पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- नयी आलोचना या नई समीक्षा विषय पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- भारतेन्दुयुगीन आलोचना पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  8. प्रश्न- द्विवेदी युगीन आलोचना पद्धति का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- आलोचना के क्षेत्र में काशी नागरी प्रचारिणी सभा के योगदान की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- नन्द दुलारे वाजपेयी के आलोचना ग्रन्थों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- हजारी प्रसाद द्विवेदी के आलोचना साहित्य पर प्रकाश डालिए।
  12. प्रश्न- प्रारम्भिक हिन्दी आलोचना के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- पाश्चात्य साहित्यलोचन और हिन्दी आलोचना के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  14. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पर एक विस्तृत निबन्ध लिखिए।
  15. प्रश्न- आधुनिक काल पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  17. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उसकी प्रमुख विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  18. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद की प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख भर कीजिए।
  21. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के व्यक्तित्ववादी दृष्टिकोण पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद कृत्रिमता से मुक्ति का आग्रही है इस पर विचार करते हुए उसकी सौन्दर्यानुभूति पर टिप्णी लिखिए।
  23. प्रश्न- स्वच्छंदतावादी काव्य कल्पना के प्राचुर्य एवं लोक कल्याण की भावना से युक्त है विचार कीजिए।
  24. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद में 'अभ्दुत तत्त्व' के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए इस कथन कि 'स्वच्छंदतावादी विचारधारा राष्ट्र प्रेम को महत्व देती है' पर अपना मत प्रकट कीजिए।
  25. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद यथार्थ जगत से पलायन का आग्रही है तथा स्वः दुःखानुभूति के वर्णन पर बल देता है, विचार कीजिए।
  26. प्रश्न- 'स्वच्छंदतावाद प्रचलित मान्यताओं के प्रति विद्रोह करते हुए आत्माभिव्यक्ति तथा प्रकृति के प्रति अनुराग के चित्रण को महत्व देता है। विचार कीजिए।
  27. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  28. प्रश्न- कार्लमार्क्स की किस रचना में मार्क्सवाद का जन्म हुआ? उनके द्वारा प्रतिपादित द्वंद्वात्मक भौतिकवाद की व्याख्या कीजिए।
  29. प्रश्न- द्वंद्वात्मक भौतिकवाद पर एक टिप्पणी लिखिए।
  30. प्रश्न- ऐतिहासिक भौतिकवाद को समझाइए।
  31. प्रश्न- मार्क्स के साहित्य एवं कला सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- साहित्य समीक्षा के सन्दर्भ में मार्क्सवाद की कतिपय सीमाओं का उल्लेख कीजिए।
  33. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- मनोविश्लेषणवाद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी प्रस्तुत कीजिए।
  35. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  36. प्रश्न- समकालीन समीक्षा मनोविश्लेषणवादी समीक्षा से किस प्रकार भिन्न है? स्पष्ट कीजिए।
  37. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  38. प्रश्न- मार्क्सवाद का साहित्य के प्रति क्या दृष्टिकण है? इसे स्पष्ट करते हुए शैली उसकी धारणाओं पर प्रकाश डालिए।
  39. प्रश्न- मार्क्सवादी साहित्य के मूल्याँकन का आधार स्पष्ट करते हुए साहित्य की सामाजिक उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
  40. प्रश्न- "साहित्य सामाजिक चेतना का प्रतिफल है" इस कथन पर विचार करते हुए सर्वहारा के प्रति मार्क्सवाद की धारणा पर प्रकाश डालिए।
  41. प्रश्न- मार्क्सवाद सामाजिक यथार्थ को साहित्य का विषय बनाता है इस पर विचार करते हुए काव्य रूप के सम्बन्ध में उसकी धारणा पर प्रकाश डालिए।
  42. प्रश्न- मार्क्सवादी समीक्षा पर टिप्पणी लिखिए।
  43. प्रश्न- कला एवं कलाकार की स्वतंत्रता के सम्बन्ध में मार्क्सवाद की क्या मान्यता है?
  44. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  45. प्रश्न- आधुनिक समीक्षा पद्धति पर प्रकाश डालिए।
  46. प्रश्न- 'समीक्षा के नये प्रतिमान' अथवा 'साहित्य के नवीन प्रतिमानों को विस्तारपूर्वक समझाइए।
  47. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  48. प्रश्न- मार्क्सवादी आलोचकों का ऐतिहासिक आलोचना के प्रति क्या दृष्टिकोण है?
  49. प्रश्न- हिन्दी में ऐतिहासिक आलोचना का आरम्भ कहाँ से हुआ?
  50. प्रश्न- आधुनिककाल में ऐतिहासिक आलोचना की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए उसके विकास क्रम को निरूपित कीजिए।
  51. प्रश्न- ऐतिहासिक आलोचना के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  52. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के सैद्धान्तिक दृष्टिकोण व व्यवहारिक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  53. प्रश्न- शुक्लोत्तर हिन्दी आलोचना एवं स्वातन्त्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  54. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  55. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में नन्ददुलारे बाजपेयी के योगदान का मूल्याकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  56. प्रश्न- हिन्दी आलोचक हजारी प्रसाद द्विवेदी का हिन्दी आलोचना के विकास में योगदान उनकी कृतियों के आधार पर कीजिए।
  57. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. नगेन्द्र के योगदान का मूल्यांकन उनकी पद्धतियों तथा कृतियों के आधार पर कीजिए।
  58. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के विकास में डॉ. रामविलास शर्मा के योगदान बताइए।

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